आध्यात्मिक दृष्टि से पौराणिक तीर्थ स्थल सती कुंड का विशेष महत्व है। भगवान शिव की ससुराल कनखल स्थित इस कुंड को पूरे भारत में स्थापित 52 शक्ति पीठों की जननी कहा जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार राजा दक्ष प्रजापति द्वारा आयोजित यज्ञ में अपने जमाता भगवान शिव का अपमान किए जाने पर माता सती रूष्ट होकर अपनी देह को यज्ञ की अग्नि में भस्म कर देती हैं। उनके इस देह त्याग से भगवान शिव प्रकुपित होकर श्रृष्टि का विनाश करने करने का निश्चय करते हैं। पूरा ब्रह्मांड उनके कोप का भाजन बनने लगता है। तब देवराज इंद्र के आग्रह पर कामदेव माता सती के अंगों को एक एक कर अपने बाणों से काटते हैं। जहां जहां माता के अंग पृथ्वी पर गिरे उस स्थान पर माता के शक्ति पीठ स्थापित हैं।
समय के प्रवाह तथा लंबे कालखंड में यह पौराणिक स्थल उचित रख रखाव न होने के कारण जीर्ण अवस्था में रहा। तब भाई पुष्कर के अथक प्रयासों तथा समर्पण भाव से इस पौराणिक स्थल का जीर्णोद्धार हुआ।
उनके देह त्याग के बाद यह बीड़ा भाई पुष्कर की बहन रजनी शर्मा ने उठाया है। प्रत्येक वर्ष दीपावली के अवसर पर यहां दीप माला से पूरा कुंड रोशनी से भर जाता है। इस वर्ष भी दीपोत्सव पर यहां 5000 दीयों से रोशनी करने की बहन रजनी की योजना है। हजारों दीयों की रोशनी असत्य पर सत्य तथा अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है।
भाई पुष्कर तथा बहन रजनी के कठोर पुरुषार्थ से सती कुंड के रूप में हमारी सांस्कृतिक धरोहर सुरक्षित है।