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गंगा के घाट रोड़ी मैदान और चौक बाजारों में होती थीं जनसभाएं

बड़ी सभाओं के लिए घोड़ामंडी पर सजते थे मंचवह जमाना जब हर चुनाव में राजनारायण सुषमा स्वराज और सिकन्दर बख्त थे विपक्ष के स्टार प्रचारकगुलामनबी लोकपति प्रमोद तिवारी और आनंद शर्मा, 1987 में मायावती ने ज्वालापुर से किया राजनीति में प्रवेशकौशल सिखौला

हरिद्वार । अध्यात्म और धर्म कर्म की इस मायानगरी में चुनाव न हों तब भी देश , प्रदेश और विदेशों से आने वाले वीआईपी तथा वीवीआईपी का आगमन लगा रहता है । समय चुनाव का हो तो पुराने जमाने से स्टार प्रचारक हरिद्वार आकर गंगा घाटों , चौक बाजारों और गंगा रेती के मैदानों में चुनावी सभाएं करते आए हैं । इन स्टार्स में डाक्टर लोहिया , राजनरायण , सिकंदर बख्त , चंद्रशेखर , भेरों सिंह शेखावत , सुषमा स्वराज , हेमवती नन्दन बहुगुणा , गुलामनबी आजाद , प्रमोद तिवारी , रामशरण दास , चंद्रभानु गुप्त , मदनलाल खुराना ,जगदीश मुखी , आनंद शर्मा आदि प्रमुख थे ।यूं तो हरिद्वार नगरी में गंगा का आकर्षण ही इस कदर है कि प्रांतीय और राष्ट्रीय हस्तियों का आगमन यहां आम बात है। लेकिन हरिद्वार के चुनावों में आमतौर पर यही स्टार प्रचारक हुआ करते थे । इस नगरी में पुराने समाजवादी काफी हुआ करते थे। डाक्टर राममनोहर लोहिया ने भी यहां प्रचार किया। औद्योगिक नगरी भेल बन जाने के बाद जार्ज फर्नांडीज प्रत्येक चुनाव में सभा करने आते थे। सुषमा स्वराज, राजनारायण, सिकंदर बख्त, भैरों सिंह शेखावत, गुलामनबी आजाद, लोकपति त्रिपाठी, आनंद शर्मा, मदनलाल खुराना, चंद्रभानु गुप्त, वीर बहादुर सिंह, हेमवतीनंदन बहुगुणा, एनडी तिवारी आदि का चुनावी सभाओं में आना लाजमी था। आमतौर पर अटल बिहारी बाजपेई, लालकृष्ण आडवाणी आते रहे हैं, लेकिन चुनावी सभाएं उन्होंने कम ही की हैं। वैसे पंडित नेहरू, इंदिरा, राजीव और सोनिया, राहुल तक को हरिद्वार का आकर्षण खींच लाया। प्रधानमंत्री मोदी ने भी एक जनसभा हरिद्वार के ऋषिकुल मैदान में की। मायावती ने अनेक चुनावी सभाएं कीं।

उस जमाने में नेता कितना भी बड़ा हो, सभाओं के स्थल नियत थे। हरिद्वार में सुभाष घाट, सब्जी मंडी चौक, भीमगोड़ा और मायादेवी प्रांगण में स्टार प्रचारकों की चुनावी सभाएं हो जाती। ज्वालापुर में चौक बाजार , कटहरा चौक , पीठ बाजार चौक , कड़च चौक और मंडी का कुवां पर बड़े बड़े नेताओं की सभाएं हुआ करती थी। कनखल में चौक बाजार और राजघाट स्टार प्रचारकों के सभा केंद्र बनते थे । भेल की सभाएं सामुदायिक भवनों में होती या बीएमएस, इंटक और एटक श्रमिक यूनियनों के कार्यालयों पर। कोई बहुत बड़ा नेता आ जाता तो उसका मंच घोड़ामण्डी या रोड़ी बेलवाला में सजाता।

आज जमाना बदल गया हैं । चूंकि श्रोता भरभरकर लाए जाते हैं अतः बड़े बड़े मैदानों में मंच लगाए जाते हैं । पुराने जमाने में दो तीन सौ लोग सभा में आ जाएं तो बड़ी सभा मानी जाती थी । अब तो आयोजक बीस तीस हजार की भीड़ न जुटाए तो नेता मंच पर आने से इंकार कर देते हैं ।

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