उत्तराखण्ड में आश्चर्यजनक सत्ता-नेतृत्व परिवर्तन के बीच भाजपा के कर्मठ , वरिष्ठ व युवा कार्यकर्ताओं के बीच एक यक्ष प्रश्न आ खड़ा हुआ है कि 2017 की बम्पर जीत के चाणक्य रहे पूर्व प्रदेश महामंत्री (संगठन) संजय कुमार को कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है या नही ? गौरतलब है कि संजय कुमार संघ प्रचारक रहते हुए 2011 में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश महामंत्री संगठन नियुक्त हुए, 2012 चुनावी वर्ष था, अल्प समय में ही संजय कुमार ने कार्यकर्ताओं को नरेंद्र मोदी के मिशन कांग्रेस-मुक्त भारत से जोड़ने का काम किया और कांग्रेस स्पष्ट बहुमत से दूर रही और उसे जोड़ तोड़ से निर्दलीयों का सहारा ले सरकार चलानी पड़ी जो पूरे पाँच वर्ष नौटंकी की तरह चलती रही, संजय कुमार के पास जो समय था, उसे उन्होंने जमीनी व योग्य कार्यकर्ताओं से सीधा जुड़ने में लगाया, पूरे प्रदेश का प्रवास , गाँव गाँव कार्यकर्ता सम्पर्क, पिछड़ी जातियों के कार्यकर्ताओं को सम्मान देना उनकी कार्यशैली रहा। संघ परिवार के संगठनों से समन्वय व युवाओं को प्रोत्साहन देने में आज तक उनका कोई सानी नही रहा, कांग्रेस से आये बागियों को भाजपा निष्ठ रखने के लिए उनके अनेक उपाय सटीक रहे, 2017 में भाजपा ने अपना का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया, और त्रिवेंद्र सिंह रावत को प्रदेश के मुखिया की कमान मिली, संजय कुमार की गति व पकड़ से परेशान कुछ लोगों ने चक्रव्यूह रच उन्हें अभिमन्यु बना डाला। षड्यंत्र इतना जबरदस्त था कि संजय कुमार द्वारा खड़े किए गए कार्यकर्ताओं, नेताओं द्वारा पार्टी फोरम पर उनके पक्ष में कोई बात रखने का साहस नही हुआ, झूठे आरोपों में फँसा उनकी विदाई करायी गयी, सूत्र बताते हैं उसके बाद संगठन का कार्य अव्यवस्थित हो गया, निष्ठावान व जमीनी कार्यकर्ताओं को अंधेरा मिला व ड्रॉइंग रूम पॉलिटिक्स वालों को रोशनी, अब जब एक बार फिर 2022 सामने है, और उत्तराखण्ड को बुलेट ट्रेन की रफ्तार वाले पुष्कर सिंह धामी मुख्यमंत्री के रूप में मिले हैं, ऐसे में ये सवाल इन दिनों भाजपा के मूल कैडर के लोगों में तैर रहा है कि क्या पार्टी संजय कुमार के माध्यम से असंतुष्ट और ज़मीनी कार्यकताओं में नए मुख्यमंत्री व प्रधानमंत्री पर विश्वास का भाव प्रबल करेगी या नही ??? समय के गर्भ में क्या छुपा है, कौन जाने
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